मन को सारे रंग लें॥

  • डॉ सत्यवान सौरभ

फागुन बैठा देखता, खाली है चौपाल।

उतरे-उतरे रंग है, फीके सभी गुलाल॥

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सजनी तेरे सँग रचूँ, ऐसा एक धमाल।

तुझमे ख़ुद को घोल दूँ, जैसे रंग गुलाल॥

बदले-बदले रंग है, सूना-सूना फाग।

ढपली भी गाने लगी, अब तो बदले राग॥

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मन को ऐसे रंग लें, भर दें ऐसा प्यार।

हर पल हर दिन ही रहे, होली का त्यौहार॥

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फौजी साजन से करे, सजनी एक सवाल।

भीगी सारी गोरियाँ, मेरे सूने गाल॥

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आओ सजनी मैं रंगूँ, तेरे गोरे गाल।

अनायास होने लगा, मनवा आज गुलाल॥

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बढ़ती जाए कालिमा, मन-मन में हर साल।

रंगों से कैसे मलें, इक दूजे के गाल॥

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स्वार्थ रंगी जब भावना, रही मनों को चीर।

बोलो ‘सौरभ’ फाग में, कैसे उड़े अबीर॥

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सूनी-सूनी होलिका, फीका-फीका फाग।

रहा मनों में हैं नहीं, इक दूजे से राग॥

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-डॉ.सत्यवान ‘सौरभ’

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