बच्चों को दंड देना कितना उचित

(निर्मला  – विनायक फीचर्स)

प्रस्तुती- सुरेश प्रसाद आजाद

हां, बच्चों को ज्य़ादा सख्त सजा नहीं देनी चाहिए क्योंकि इससे वे सुधरने के बजाय बिगडऩे लगते हैं। बच्चे को सजा देने से पहले पेरेंट्स को अपनी पेरेंटिंग के तरीके का मूल्यांकन करके उसमें सुधार लाने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चे को सजा देना उसकी समस्या का स्थायी समाधान नहीं है।

अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को अपनी प्रॉपर्टी समझते हैं, साथ में यह भी चाहते हैं कि जैसा वे चाहते हैं, बच्चा वैसा ही कार्य करे। हालांकि पहले की अपेक्षा आज के समय के बच्चों के पालन-पोषण पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है। मां-बाप अपनी आर्थिक स्थिति में जहां तक है, सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। कई बार अधिक दुलार प्यार, बच्चों के पालन में बहुत हानिकारक होता है। अत: उन्हें सुधारने के लिए अंत में अधिक कठोर दंड का उपयोग करते हैं।

इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अपनी बात मनवाने के लिए कई बार मां-बाप उन्हें कठोर दंड दे डालते हैं, जैसे रस्सी से बांधना, धूप में खड़ा करना, कान ऐंठना, बाल खींचना, बात-बात पर चांटा मारना आदि। कई बार तो कमरे में बंद करना, उन्हें खाना-पीना न देना। कुछ अभिभावक यह तर्क देते हैं कि उनकी भलाई के लिए कठोर दंड देना उचित है, लेकिन सवाल यह है कि माता-पिता यह क्यों भूल जाते हैं कि बच्चा चाहे जितना छोटा हो, लेकिन उसका अपना भी एक स्वाभिमान है। उज्ज्वल भविष्य के लिए उनका वर्तमान खराब करना कहां तक उचित है। यह कठोर दंड बच्चों को शारीरिक रूप से कमजोर करने के साथ-साथ दिमाग पर भी हानिकारक प्रभाव डालता है। उनका शारीरिक विकास रुक जाता है। अनेक प्रकार के मनोविकार उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे बच्चे घरेलू संस्कार और जीवन से विहीन होकर सामाजिक समस्या बन जाते हैं। स्ट्रीट चिल्ड्रन इसी समस्या का विकृत रूप है। वास्तव में ऐसे कानून बनाने की जरूरत आज समूचे विश्व को है। विशेषकर भारत जैसे विकासशील देश में तो यह और भी महत्वपूर्ण है।

अभिभावक शिक्षकों द्वारा दिए दंड पर तो बौखला उठते हैं, लेकिन खुद दंड देने वाली क्रूरता को प्यार का ही एक रूप मानते हैं। आखिर क्यों दोनों की प्रवृत्ति समान है। दंड किसी के भी द्वारा दिया जाना उचित नहीं है, क्योंकि जिनको शारीरिक दंड दिया जाता है, उनका मानसिक विकास दूसरे बच्चों की अपेक्षा कम होता है।

अभिभावक अगर सही मायने में बच्चे की भलाई चाहते हैं तो उन्हें अपनी संकीर्ण सोच में परिवर्तन लाना होगा। बच्चे तो राष्ट्र के भविष्य हैं हालंाकि इसमें कोई संदेह नहीं कि माता-पिता बच्चे का हित चाहते हैं, लेकिन सोचना यह है कि मारने-पीटने और सजा देने से ही क्या भला होगा? मारपीट कर तत्काल तो रोका जा सकता है परंतु इससे भविष्य में वह बालक, अभिभावक का विरोधी हो जाता है और किसी तरह से माता-पिता को कष्ट पहुंचाने की कोशिश करता है।

अभिभावक अगर सही मायने में बच्चे की भलाई चाहते हैं तो उन्हें अपनी संकीर्ण सोच में परिवर्तन लाना होगा। बच्चे तो राष्ट्र के भविष्य हैं हालंाकि इसमें कोई संदेह नहीं कि माता-पिता बच्चे का हित चाहते हैं, लेकिन सोचना यह है कि मारने-पीटने और सजा देने से ही क्या भला होगा? मारपीट कर तत्काल तो रोका जा सकता है परंतु इससे भविष्य में वह बालक, अभिभावक का विरोधी हो जाता है और किसी तरह से माता-पिता को कष्ट पहुंचाने की कोशिश करता है।

मनोचिकित्सकों का कहना है कि बच्चों को प्यार से उनकी गलतियों और कुप्रभावों के बारे में सही-गलत की जानकारी दें। यह हो सकता है कि बच्चे पर इसका प्रभाव जल्दी न हो परंतु इस कोशिश को मां-बाप लंबे समय तक जारी रखें। इससे यह फायदा होगा कि बच्चे वस्तुस्थिति से परिचित हो जाएंगे। इसके पश्चात उनकी गलत आदतों में अवश्य सुधार होगा। इसका प्रभाव बच्चे पर अल्पकालीन न होकर दीर्घकालीन होगा, जो आपके परिवार, समाज और राष्ट्र के हित में होगा।

सभी मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों को किसी प्रकार का कठोर दंड देना उचित नहीं है, चाहे माता-पिता द्वारा दिया जाए या शिक्षक द्वारा। दंड देने से बच्चे विकसित न होकर बर्बाद हो जाते हैं। उन्हें प्यार से समझाएं, यही उनके बेहतर भविष्य के लिए उचित है। (विनायक फीचर्स)

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