अधूरे कवि का सपना …………… पंकज शर्मा तरूण – विभूति फीचर्स

प्रस्तुती – सुरेश प्रसाद आजाद

साहित्यकारों का संसार भी बाकी दुनिया से भिन्न ही है।उनकी सोच के मुक़ाबिल कोई सोच हो नहीं सकती, चचा गालिब सी कोई गजल हो नहीं सकती।आजकल इस सूचना के इंटरनेट, विस्फोटक युग में आपको हर कदम पर साहित्यकार,कवि,शायर पत्रकार,लेखक विचारक,चिंतक मार्गदर्शक कुकुरमुत्ते की भांति उगे हुए मिलते हैं। जिनके सतरंगी वस्त्र विन्यास, हंस जैसी चाल, उलझी घनी मुख पर श्वेत श्याम दाढ़ी। मस्तक पर कुछ खींची रेखाएं जो उनके साहित्यकार होने की ओर इशारा कर देती हैं। सफर में अगर हम सफर हो तो सफर बड़ा सुहाना हो जाता है वायु यान हो या ट्रेन,बस हो आपका सफर साहित्यिक और शायराना हो जाता है। उनके मुख से निकली हर बात शायरी ही होती है!
पिछले दिनों मुझे भी साहित्यकार समझ कर लोकल साहित्यकारों ने नगर में आयोजित की जा रही काव्य गोष्ठी में निमंत्रित कर लिया एक कथित महा कवि ने फोन लगा कर कहा पंकज भैया हमने आज प्रसिद्ध साहित्यकार झमक लाल मतलब परस्ते की जन्म जयंती पर उनकी याद में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन नगर पालिका भवन में रखा है सो आप भी सादर आमंत्रित हैं। पूरी बात सुन कर मैंने उन्हें जी धन्यवाद कह कर फोन काट दिया। मेरे  रोंगटे खड़े हुए जा रहे थे वो इसलिए कि मेरी छुपी प्रतिभा जिसका मुझे भी भान नहीं था, को लोगों ने पहचान कर मुझे प्रबुद्ध जनों में शामिल कर लिया था। काव्य गोष्ठी में निर्धारित समय पर मैने अपनी इंट्री दी मंच सजा हुआ था शहर के बड़े बड़े विद्वान मसनद पर अपनी पींठ को लगाए बैठे थे मैं जैसे ही पहुंचा तो कुछ सभ्य कवियों ने तो मुस्कुरा कर स्वागत किया मगर बाकियों के मुख की आकृति में बदलाव स्पष्ट झलक रहा था मानो कह रहे हों इस मूर्ख को किसने निमंत्रण दे डाला? खैर मैं भी मंच पर ढिठाई से बैठ गया। कवियों के चुटकुले उनके चिर परिचित अंदाज से श्रोताओं को गुदगुदाने का असफल प्रयास करते रहे। कुछ तालियाँ बजवाने के लिए श्रोताओं को यह कह कर बाध्य करते रहे कि जो यहां ताली नहीं बजाएगा वो अगले जन्म में घर घर जा कर तालियां बजाएगा अर्थात वृहन्नला बनेगा। जब मेरा नंबर आया तब तक सारे श्रोता विदा हो चुके थे। हताशा के नाले को पार कर मैं घर पहुंचा
मैं उस रात सो नहीं पाया। सपनों के समंदर में रात भर डूबता ,तैरता, इतराता रहा।सपने में मुझे साहित्यिक सम्मान तक मिल गया था। बड़े- बड़े कवि उदास मन से मुझे बधाईयां दे रहे थे और मेरा गला पुष्प हारों से पूरा भरा हुआ था। तभी मुझे लगा बरसात हो गई है। दरअसल नींद खुल गई थी पत्नी ने जग भर कर मुझ पर पानी डाल दिया था। जगाने के सभी प्रयास विफल होने के कारण। कह रही थी पकौड़े की दुकान पर नहीं जाना क्या? ग्राहक प्रतीक्षा कर रहे होंगे। (विभूति फीचर्स) 

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