(नरेंद्र शर्मा परवाना-विभूति फीचर्स)

स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसी शख्सियत थे, जिनकी लेखनी ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी, भारतीय चेतना को जागृत किया। वे न सिर्फ क्रांतिकारी थे, बल्कि एक विचारक, कवि, इतिहासकार और समाज सुधारक भी थे। उनकी लेखनी में इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रवाद का अद्भुत संगम है। युवाओं के पथप्रदर्शक वीर सावरकर के विचार, लेखन और जीवन संदेश से आज का युवा उनसे बहुत कुछ सीख सकता है। वह शक्ति जो उनकी कलम में थी, वह आज भी हमें प्रेरित करती है?
सावरकर का लेखन: विधाएं और विषय
सावरकर ने मराठी, हिंदी और अंग्रेजी में विभिन्न विधाओं में लिखा। उनकी रचनाएं ऐतिहासिक विश्लेषण, कविता, नाटक, आत्मकथा और दार्शनिक चिंतन से समृद्ध हैं। उन्होंने कुल 10 प्रमुख पुस्तकें लिखीं, जिनमें इतिहास, हिंदुत्व, और सामाजिक सुधार जैसे विषय प्रमुख थे। उनकी लेखनी का उद्देश्य था – भारतीयों में स्वाभिमान और राष्ट्रीय चेतना का संचार करना। उनके लेखन में भारत के गौरवशाली अतीत और भविष्य की संभावनाएं जीवंत हो उठती हैं।
*प्रमुख पुस्तकें और उनका मूल भाव*
सावरकर की पांच श्रेष्ठ पुस्तकों और उनके मूल भाव इस प्रकार हैं – *1857 का स्वतंत्रता संग्राम* ,इस पुस्तक में 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में स्थापित किया, जो भारतीयों में राष्ट्रीय गौरव जागृत करता है। *हिंदुत्व: हू इज़ अ हिंदू* हिंदू पहचान को सांस्कृतिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से परिभाषित किया, एकता पर बल दिया। *माझी जन्मठेप* अंडमान जेल के अनुभवों की आत्मकथा, जो त्याग, बलिदान और दृढ़ता का संदेश देती है। *सिक्स ग्लोरियस एपॉक्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री* भारतीय इतिहास के गौरवशाली कालखंडों को उजागर कर राष्ट्रवाद को प्रेरित किया। *हिंदू पदपादशाही* मराठा साम्राज्य के गौरव को दर्शाते हुए संगठित भारत का स्वप्न प्रस्तुत किया। इन पुस्तकों का मूल भाव है- भारत को सांस्कृतिक, बौद्धिक और सैन्य रूप से सशक्त बनाना।
*युवाओं के लिए सावरकर का संदेश*
सावरकर का लेखन युवाओं को स्वाभिमान, आत्मबल और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देता है। वे कहते थे कि राष्ट्र के लिए जीना ही सच्चा जीवन है। उनकी लेखनी जात-पात, रूढ़ियों और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ थी। आज के युवा उनसे अनुशासन, साहस और बौद्धिक जागरूकता सीख सकते हैं। सावरकर का मानना था कि युवा ही राष्ट्र का भविष्य हैं, और उन्हें अपने इतिहास से प्रेरणा लेकर समाज सुधार और राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए।
*सावरकर का दृष्टिकोण: राष्ट्रीय और वैश्विक*
सावरकर की सोच भारत तक सीमित नहीं थी। वे भारत को वैश्विक मंच पर एक सशक्त सांस्कृतिक और सैन्य शक्ति के रूप में देखना चाहते थे। उन्होंने तकनीकी प्रगति को अपनाने पर जोर दिया, पर साथ ही भारतीय मूल्यों को बनाए रखने की वकालत की। उनकी दृष्टि थी कि भारत विश्व गुरु बने, लेकिन अपनी आत्मा को संजोए। उनका यह दृष्टिकोण आज के युवाओं को वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है।

उनकी कलम से निकला हर शब्द आज भी उतना ही प्रासंगिक है। वे हमें सिखाते हैं कि सच्चा देशभक्त वह है जो न केवल तलवार, बल्कि विचारों और कर्म से भी राष्ट्र की सेवा करता है। युवा उनके लेखन को पढ़ें, उनके विचारों को आत्मसात करें और भारत को सशक्त बनाने में योगदान दें। सावरकर का जीवन और लेखन हमें यही संदेश देता है कि स्वाभिमान से जियो, राष्ट्र के लिए जियो! *(विभूति फीचर्स)*