शोषित इंकलाब के अग्र‌दुत अमर शहीद जगदेव प्रसाद कुशवाहा जी के शहादत दिवस पर शत शत नमन करता हूं..

 रविकान्त वर्मा

भरत लेनिन अमर शहीद जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को तत्कालीन गया जिला के वर्तमान जहानाबाद जिला के सकुराबाद प्रखंड अंतर्गत कुरहारी ग्राम में हुआ था।

वह छात्र जीवन से ही क्रांतिकारी विचारों के थे शोषण उनसे बर्दाश्त नहीं होता था वह शोषण के खिलाफ मुखर होकर के आवाज उठाते थे। उनके पिताजी शिक्षक थे जगदेव प्रसाद का प्रारंभिक पढ़ाई उनके पिताजी के स्कूल में हुई, जब जगदेव प्रसाद मैट्रिक प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किए तो उनके पिताजी ने नया धोती, कुर्ता, गमछा उपहार स्वरूप ला कर दिए। 

वह नया कुर्ता, धोती पहन कर खूब फब रहे थे। वह काफी खुश भी थे, नया कुर्ता, धोती, गमछा से उन्हें खुशी का ठिकाना नहीं था वह पहन कर के अपने गांव के चारों तरफ काफी खुशी और उमंग में घूम रहे थे। उन पर नजर गांव के जमींदारों की पड़ी जगदेव प्रसाद के देखकर वह जलने लगे और जलनवश उसमें से एक जमींदार ने कहा कोइरी के लौंडा के इतना हिम्मत हो गया कि हमारे सामने नया कुर्ता धोती गमछा पहनकर आ जाए‌। ये तो धर्म के विरुद्ध काम कर रहा हे। जगदेउया तुम अपना औकात मत भूलो कोइरी होकर के हमारे गली में नया कुर्ता धोती पहन कर घूम रहे हो, तुम अपना औकात भूल गए हो क्या। जमींदारों की है यह बातें सुनकर जगदेव बाबू को मन में काफी ठेस पहुंचा वह घर आकर के मन-मार कर के गुमशुम होकर घर के कोने कोने में बैठे ग‌ए।

उनके पिताजी जब घर आए तो देखें जगदेव प्रसाद उदास होकर बैठा हुआ है। उन्होंने पूछा जगदेव क्या बात है बेटा तुम इतना उदास होकर क्यों बैठे हुए हो, उन्होंने पूछा पिताजी यह नया कुर्ता, धोती, गमछा आप अपने पैसा से खरीद कर के न दिया है। उनके पिताजी ने कहा जी हां बेटा, यह तो मैंने अपने पैसे से ही खरीद करके दिया है। तो फिर जमींदार लोग हमें नया कुर्ता, धोती, गमछा पहने हुए देखकर गाली-गलौज कर रहे थे, क्यो बोल रहे थे, क्यों हमसे पुछ रहे थे कि तुम कोइरी हो अपना औकात मत भुलो, तुमको नया पहन कर के इस गली में नहीं आना है तुम अपना औकात क्यों भूल रहे हो। जगदेव प्रसाद यह सोचते रहे उस रात में उन्होंने खाना भी नहीं खाया। आज का घटना उनके मन मस्तिष्क में सामाजिक क्रांति की हिलकोरे लेने लगी। 

जगदेव प्रसाद क‌ई एसे सामाजिक कार्य किए समाजिक ऊंच-नीच भेदभाव के खिलाफ खड़े रहें और शोषित समाज को जगाने के लिए शोषित समाज के मान-सम्मान हक अधिकार बहु-बेटियों की इज्जत की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी अपना बलिदान 5 सितंबर 1974 को कुर्था की धरती पर दिए आज भले ही हम लोग थोड़ा-थोड़ा मान सम्मान के साथ जी लेते हैं लेकिन आज भी जगदेव प्रसाद को करवा रुका हुआ है उनके कारवां को कुशवाहा मौर्य समाज लगातार आगे लेकर के बढ़ रहा है उसमें आपके सहयोग की जरूरत है।

जगदेव बाबू एक व्यक्ति ही नहीं एक विचार थे उन्होंने जिस समाज के उत्थान के लिए पुलिस और सामंती गठजोड़ के खिलाफ भारत की सरजमीं पर बिगुल फूंका और अपना बलिदानी दिया ऐसे क्रांति-पुत्र को शोषित के लेनिन को सौ बार नमन …

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