विजय मंदिर आंदोलन के प्रणेता निरंजन वर्मा

(अंजनी सक्सेना-विभूति फीचर्स) प्रस्तुती – सुरेश प्रसाद आजाद

मध्यभारत प्रांत के नेता प्रतिपक्ष रहे स्वर्गीय निरंजन वर्मा न केवल एक उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ थे बल्कि वे एक कुशल इतिहासकार भी थे।पर उन्हें सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई विदिशा के विजय मंदिर आंदोलन से।अपने इस आंदोलन के द्वारा उन्होंने न केवल  विदिशा के जनमानस को आंदोलित किया बल्कि उन्होंने देश के उस गौरव पूर्ण इतिहास को भी दुनिया के समक्ष लाने की कोशिश की जिसे बलपूर्वक दबा दिया गया।

विदिशा जिले के छोटे से गांव पुरैनिया में जन्मे श्री निरंजन वर्मा  ने विदिशा के एक शताब्दी के 

इतिहास को सामने लाने के  सार्थक प्रयास किए।इसके लिए उन्होंने न केवल जनांदोलन किए बल्कि अपनी लेखनी द्वारा भी जनमानस को जागृत किया।

श्री वर्मा को पूर्व मध्य भारत प्रांत के जननेता आंदोलनकर्ता एवं इतिहास ,संस्कृति के लेखक के रुप में भी राष्ट्रीय ख्याति और प्रतिष्ठा प्राप्त हुई । 1952 के चुनाव में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबू तख्तमल जैन को बासौदा विधानसभा से पराजित करके तहलका मचा दिया था।तत्कालीन मुख्यमंत्री को हराकर वे मध्य भारत विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बने थे। 1966 से 1972 तक वे भारतीय जन संघ की ओर से राज्यसभा के सांसद भी रहे ।इस दौरान वे कई समितियों के अध्यक्ष और सदस्य भी रहे। उन्होंने चीन,जापान और बर्मा(म्यामांर) जाकर वहां भी विदिशा के गौरवपूर्ण इतिहास को सबके सामने रखा।इतिहास के विषय में उनकी विद्वता के श्री अटल बिहारी वाजपेई एवं लक्ष्मीमल्ल सिंघवी भी कायल थे।

हिंदू धर्म एवं संस्कृति के अनन्य उपासक श्री वर्मा

भारत  की एकता और अखंडता के प्रति सदैव समर्पित रहे।

 विदिशा के बीजा मंडल अर्थात विजय मंदिर के आंदोलन  के तो वे प्रणेता ही थे।दसवीं शताब्दी में यह एक भव्य एवं विशालकाय मंदिर था।इस मंदिर को पहले इल्तुतमिश फिर अलाउद्दीन खिलजी के मंत्री मलिक काफूर उसके बाद मांडू के शासक महमूद खिलजी ने जमकर लूटा।बाद में गुजरात के बहादुर शाह और अंत में औरंगजेब ने इस मंदिर को तहस नहस कर दिया लेकिन किंवदंतियों में यह मंदिर निरंतर जीवित रहा।बाद में कुछ वर्षों तक यहां वाद विवाद भी चलता रहा । इसी बीच श्री वर्मा ने कई आंदोलनों द्वारा इस मंदिर की मुक्ति के लिए अभियान चलाया।इसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।विजय मंदिर के अलावा काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनरुद्धार आंदोलन में भी उन्होंने कई बार जेल यात्राएं की।विजय मंदिर के मामले में पुरातात्विक उत्खनन के बाद अंततः उनका सच साबित हुआ कि बीजा मंडल ही वह भव्य विजय मंदिर है जिसे तोड़कर मस्जिद बनायी गई थी।

श्री वर्मा ने अपने पैतृक गांव पीपलखेड़ा में हिंदू महासभा का प्रांतीय अधिवेशन भी आयोजित कराया था जो उस दौर में एक अचंभा ही था।इसके साथ ही वे हिंदी साहित्य सम्मेलन से भी  जुड़े रहे और सन 1975 में विदिशा में इसके प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन भी उन्होंने ही किया ,जिसमें तत्कालीन गृहमंत्री  बाबू जगजीवन राम  सहित देश के 100 से अधिक प्रमुख लेखकों और कवियों की उन्होंने मेजबानी की।

 श्री निरंजन वर्मा  आंदोलन कारी जननेता के साथ-साथ कुशलअध्येता,प्रखर इतिहासविद् तथा शोधार्थी भी थे।उन्होंने

20 से अधिक पुस्तकें भी लिखी जो खासी चर्चित एवं लोकप्रिय रहीं।दशार्ण दर्शन, असंधिमित्रा तथा युद्ध एवं जौहरगाथाएं उनकी लोकप्रिय एवं चर्चित पुस्तकें रही। विदिशा के प्राचीन वैभव के साथ ही देश के धर्म और संस्कृति पर भी उन्होंने कई लेख लिखे ।

निरंजन वर्मा का विजय मंदिर आंदोलन अंततः सही और सफल तो सिद्ध हुआ लेकिन उनके जानने वालों का मानना है कि अभी उनकी यह सफलता अधूरी है,उनका यह आंदोलन तभी पूर्णतः सफल और सार्थक सिद्ध होगा जब विजय मंदिर अपने पुरातन वैभव और गरिमा को पुनः प्राप्त कर लेगा और शायद यह निकट भविष्य में यह संभव भी होगा।(विभूति फीचर्स)

ReplyForwardYou can’t react with an emoji to this message

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *