बिहार में फिर से इंदिरा गांधी? -ज्ञानचंद मेहता

 कांग्रेस, बिहार में नया पोस्टर लाया है, ‘मां  तुझे सलाम !’ सुना है, कल या परसो ‘मदर्स डे’ था।

     माता इंदिरा गांधी की बात ही कुछ और थी। कई सच थे। एक सच यह था वह चीन से कांपती थी, थर्र – थर्र! वह अपने देश के लिए एक क्रूर और आयरन लेडी होगी। इस कारण  कांग्रेसी भैया लोग उन्हें आयरन लेडी कहते हैं। क्या खूबसूरत इमरजेंसी लगाई थी, जनाब! कूचा – कूचा, बूटा – बूटा धमक गया था। सिर्फ, इस बात पर कि  इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दे दिया था, कि इंदिरा गांधी रायबरेली का चुनाव गलत ढंग से जीती है। उनका निर्वाचन रद्द किया जाता है। कायदे की बात  तो यह थी कि वह(इंदिरा गांधी) तुरंत प्रधानमंत्री  का पद कर त्याग कर संविधान का सम्मान कर एक आदर्श प्रस्तुत करती।  सीनियर नेता बाबू जगजीवन राम को  प्रधानमंत्री बनवाने की अनुशंसा कर देती।

     लेकिन, सभी संवैधानिक तौर – तरीकों को ध्वस्त करके समूचे देश को जेल बना दिया था! हिटलर का लेडीज अवतार को सभी ने देखा! 19 महीना यह देश दुनिया में तो था मगर, इंदिरागांधी  के अतार्किक और  अन्याय पूर्ण  आपातकाल सड़ता  रहा! कोई कहीं चूं तक नहीं  करता था। देश में, श्मशान सा एकदम सन्नाटा था….! केवल मुर्दे जलने की आग से लकड़ियों के चटखने , पटखने की आवाजें आती थीं। सभी नेता A to Z जेलो में बंद थे। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे बिहार के सर्वोदयी नेता वयोवृद्ध लोकनायक जयप्रकाश नारायण  की किडनी सड़वा कर मौत के कराल गाल में पहुंचा दिया गया था। आयरन लेडी के कार्यकर्ता अपने जुलूस में एक बेहद घृणित नारा लगाया करते थे,

   ‘जय प्रकाश की सड़ी लाश को कुत्ते खाना छोड़ दो!’

यह नारा, कदाचित डॉक्टर धर्मवीर भारती ( संपादक: धर्मयुग) के ‘मुनादी’ शीर्षक से लिखे आह्वान गीत के  विरोध में ठेठ बिहारी जवाब था! यह बिहार आज भी जीवंत है। इंदिरा गांधी की हकीकत बिहार को पता है।

     ऐसे चुनावी पोस्टर दो दिन में फीके हो जाते हैं। इंदिरा गांधी कोई आयरन लेडी नहीं थी और न ही उनका कोई कुशल नेतृत्व था। उन सभी वृतांतो का यहां उल्लेख करना न कोई जरूरत है, न मेरा उद्देश्य है। मेरा लक्ष्य मात्र इतना है, बिहार  स्वस्थ्य रहे।

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