नव वर्ष पर सौरभ दम्पति की चार रचनाएँ

 *महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल॥* 

बने विजेता वह सदा, ऐसा मुझे यक़ीन।

आँखों में आकाश हो, पांवों तले ज़मीन॥

तू भी पायेगा कभी, फूलों की सौगात।

धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात॥

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बीते कल को भूलकर, चुग डालें सब शूल।

महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल॥

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तूफानों से मत डरो, कर लो पैनी धार।

नाविक बैठे घाट पर, कब उतरें हैं पार॥

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छाले पांवों में पड़े, मान न लेना हार।

काँटों में ही है छुपा, फूलों का उपहार॥

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भँवर सभी जो भूलकर, ले ताकत पहचान।

पार करे मझदार वो, सपनों का जलयान॥

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तरकश में हो हौंसला, कोशिश के हो तीर।

साथ जुड़ी उम्मीद हो, दे पर्वत को चीर॥

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नए दौर में हम करें, फिर से नया प्रयास।

शब्द क़लम से जो लिखें, बन जाये इतिहास॥

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आसमान को चीरकर, भरते वही उड़ान।

जवां हौसलों में सदा, होती जिनके जान॥

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उठो चलो, आगे बढ़ो, भूलो दुःख की बात।

आशाओं के रंग से, भर लो फिर ज़ज़्बात॥

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छोड़े राह पहाड़ भी, नदियाँ मोड़ें धार।

छू लेती आकाश को, मन से उठी हुँकार॥

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हँसकर सहते जो सदा, हर मौसम की मार।

उड़े वही आकाश में, अपने पंख पसार॥

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हँसकर साथी गाइये, जीवन का ये गीत।

दुःख सरगम-सा जब लगे, मानो अपनी जीत॥

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सुख-दुःख जीवन की रही, बहुत पुरानी रीत।

जी लें, जी भर जिंदगी, हार मिले या जीत॥

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खुद से ही कोई यहाँ, बनता नहीं कबीर।

सहनी पड़ती हैं उसे, जाने कितनी पीर॥

-डॉ. सत्यवान सौरभ

2. करिये नव उत्कर्ष।

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मिटे सभी की दूरियाँ, रहे न अब तकरार।

नया साल जोड़े रहे, सभी दिलों के तार।।

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बाँट रहे शुभकामना, मंगल हो नववर्ष।

आनंद उत्कर्ष बढ़े, हर चेहरे हो हर्ष।।

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माफ करो गलती सभी, रहे न मन पर धूल।

महक उठे सारी दिशा, खिले प्रेम के फूल।।

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गर्वित होकर जिंदगी, लिखे अमर अभिलेख।

सौरभ ऐसी खींचिए, सुंदर जीवन रेख।।

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छोटी सी है जिंदगी, बैर भुलाये मीत।

नई भोर का स्वागतम, प्रेम बढ़ाये प्रीत।।

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माहौल हो सुख चैन का, खुश रहे परिवार।

सुभग बधाई मान्यवर, मेरी हो स्वीकार।।

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खोल दीजिये राज सब, करिये नव उत्कर्ष।

चेतन अवचेतन खिले, सौरभ इस नववर्ष।।

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आते जाते साल है, करना नहीं मलाल।

सौरभ एक दुआ करे, रहे सभी खुशहाल।।

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हँसी-खुशी, सुख-शांति हो, खुशियां हो जीवंत।

मन की सूखी डाल पर, खिले सौरभ बसंत।।

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-डॉ सत्यवान सौरभ

3. *आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥* 

खिली-खिली हो जिंदगी, महक उठे अरमान।

आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥

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दर्द दुखों का अंत हो, विपदाएँ हो दूर।

कोई भी न हो कहीं, रोने को मजबूर॥

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छेड़ रही है प्यार की, मीठी-मीठी तान।

नए साल के पँख पर, ख़ुशबू भरे उड़ान॥

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बीत गया ये साल तो, देकर सुख-दुःख मीत।

क्या पता? क्या है बुना? नई भोर ने गीत॥

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माफ़ करे सब गलतियाँ, होकर मन के मीत।

मिटे सभी की वेदना, जुड़े प्यार की रीत॥

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जो खोया वह सोचकर, होना नहीं उदास।

जब तक साँसे हैं मिली, रख खुशियों की आस॥

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पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक।

जाने वाला जायेगा, कौन सके है रोक॥

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पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पाँव।

कैसे पहुँचेगा भला, वह प्रियतम के गाँव॥

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रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष।

नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष॥

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दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात।

सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात॥

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चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार।

चलने से कटता सफ़र, चलना जीवन सार॥

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काँटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार।

तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार॥

-प्रियंका सौरभ

4. *नए साल का सूर्योदय॥*

पल-पल खेल निराले हो,

आँखों में सपने पाले हो।

नए साल का सूर्योदय यह,

खुशियों के लिए उजाले हो॥

मानवता का संदेश फैलाते,

मस्जिद और शिवाले हो।

नीर प्रेम का भरा हो सब में,

ऐसे सब के प्याले हो॥

होली जैसे रंग हो बिखरे,

दीपों की बारात सजी हो,

अंधियारे का नाम ना हो,

सबके पास उजाले हो॥

हो श्रद्धा और विश्वास सभी में,

नैतिक मूल्य पाले हो।

संस्कृति का करे सब पूजन,

संस्कारों के रखवाले हो॥

चौराहें न लुटे अस्मत,

दु: शासन न फिर बढ़ पाए,

भूख, गरीबी, आतंक मिटे,

न देश में धंधे काले हो॥

सच्चाई को मिले आजादी,

लगे झूठ पर ताले हो।

तन को कपड़ा, सिर को साया,

सबके पास निवाले हो॥

दर्द किसी को छू न पाए,

न किसी आँख से आंसू आए,

झोंपडिय़ों के आंगन में भी,

खुशियों की फैली डाले हो॥

‘जिए और जीने दे’ सब

न चलते बरछी भाले हो।

हर दिल में हो भाईचारा

नाग न पलते काले हो॥

नगमों-सा हो जाए जीवन,

फूलों से भर जाए आंगन,

सुख ही सुख मिले सभी को,

एक दूजे को संभाले हो॥

-प्रियंका सौरभ

-डॉ. सत्यवान सौरभ – प्रियंका सौरभ

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