दो बाँके!

  ज्ञानचंद मेहता

इस शीर्षक से महान उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा की एक प्रसिद्ध  कहानी लिखी पड़ी है। म इस शीर्षक से मै भी एक व्यंग्य लेख वर्ष 2000 या उसके बाद लिखा था! हिंदी दैनिक प्रभार खबर , रांची में छापा था। मेरे हास्य लेख को छोड़िए। सीमा पर का रोमांच समाप्त हो गया ! एक रुखी –  सूखी हवा फिर से बहने लगी। बहुत मुश्किल से ऐसा लग्न , मुहूर्त बनता है। बन गया था। आवश्यकता थी दो-चार झन्नाटेदार और करारे थप्पड़ पाकिस्तान के और पड़ते। नहीं पड़े। पाकिस्तान ‘तुम्हारी भी जय – जय, हमारी भी जय – जय,  न तुम हारे न हम हारे’ के गीत गाकर अपने मुल्क को मजे के  माहौल में ला सकता है, हँस सकता है। मगर, अकेले में पाकिस्तान की फ़ौज चाइना की ड्रोन की नाकामयाबी को लेकर चीन को फफक कर रो भी सकता है! के एल सहगल का गीत उसे तैयार मिलेगा, ‘अब जी के क्या करेंगे, जब दिल ही टूट गया!’  पाकिस्तान के लीडरान अपनी जनता के आगे शोखियां भी हजार बघार लेंगे लेकिन, निहायत ही नितांत में  मियां शाहबाज शरीफ भी गायेंगे तो क्या गायेंगे, 

  “ इस दुनियां की रीत के खातिर

     मैंने बात निभाई है।

     यूं तो हंसता रहता हूं ,

     पर चोट ज़िगर पर खाई है…”

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