अधूरी उड़ान

✈️ “अधूरी उड़ान”

— प्रियंका सौरभ द्वारा

उड़े थे कुछ सपने, हथेलियों पे रौशनी लिए,

हर आँख में मंज़िल थी, हर दिल में दुआ लिए।

कोई लौट रहा था अपनों की बाहों में,

कोई उम्मीद ले गया था दफ्तर की राहों में।

आसमान ने बाँहें खोलीं थीं स्वागत को,

पर किसे पता था, काल खड़ा था आघात को।

एक पल में सब शांतियाँ चीख़ बन गईं,

हँसती ज़िंदगियाँ राख की राख़ बन गईं।

ना आख़िरी अल्फ़ाज़, ना कोई निशानी,

जो कल थे मुस्कान, आज बस कहानी।

बचपन, जवानी, बुज़ुर्गी — सब साथ थे,

एक ही उड़ान में कई जज़्बात थे।

फटे बैग, जलती तस्वीरें, अधूरी चिट्ठियाँ,

ज़मीन पर बिखरीं रह गईं सब इच्छाएँ मिट्ठियाँ।

वो माँ जो कह रही थी “जाना, फोन करना”,

अब बस उसके आँसुओं में है “तेरा लौट आना”।

जहाँ लैंड करना था, वहाँ बस सन्नाटा है,

सफर अधूरा है, दर्द का पन्ना-पन्ना काटा है।

पर तुम सितारे बन गए उस काले गगन में,

हमेशा जगमगाओगे हर टूटे हुए मन में।

श्रद्धांजलि…

उन सभी 242 आत्माओं को,

जो मंज़िल से पहले ही अमर हो गईं।

🙏
🕊️

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

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